पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – १६ (16)

सच में उठक बैठक करने लगी कुसुम। पलाश को देखते हुए अचानक कुसुम को बहोत अच्छा लगने लगा। उसे किसी और के साथ देखकर इस इंसान का जलन, आँखों में गुस्सा, ये सब कुछ जैसे बता रहा हो,”पलाश तुझ से बहोत प्यार करता है कुसुम, इसीलिए तो किसी और के साथ देखकर सेह नहीं पाता।”

स्वीटी को देख कर जैसे उसे जलन हो रही थी वैसी ही जलन अभी पलाश के सीने पर भी है। कुसुम के रोते हुए चेहरे पर हलकी सी मुसकुराहट आ जाती है। उस दिन पलाश की तरह कुसुम बोली, “जलन हो रही है?”

यह सुनकर पलाश आंखे दिखाकर कहा, “मुझे क्यू जलन होगी? मैं हूँ कौन हां?”

पलाश

कुसुम पलाश के अभिमान से भरे चेहरे को देखता रहता है। इस वक़्त पलाश उसे सबसे खूबसूरत इंसान लग रहा है। सबको लगेगा कि नहीं पता नहीं, लेकिन सुना है लड़कियां जिससे प्यार करती है, वह दिखने में जैसा ही हो, उस लड़की के नज़रों में सुन्दर ही होता है, कुछ ज़्यादा ही सुन्दर।

कुसुम पलाश को थोड़ा और चिढ़ाने के लिए कहती है, “सच में, आप है कौन?”

पलाश गुस्से से कहता है, “तुझे पता नहीं है मैं कौन हूँ?”

कुसुम पलाश के मुँह से बात निकलवाने के लिए कहती है, “आप तो कभी कुछ बोले नहीं, तो कैसे पता होगा?”

पलाश ने सोचा सच में, इतना प्यार करता है, लेकिन कुसुम को कभी कहा ही नहीं। लेकिन हार नहीं मानना है,”बोलना क्यू पड़ेगा? तू बच्ची है? देखु तो!!”

पलाश कुसुम की ओड़ हाथ बढ़ाता है। कुसुम पीछे हटकर बोली,” पागल को गए है क्या?”

पलाश उसके बालों को सेहला देता है, थोड़ी नरमी से कहता है,”वो भी तुझे ही अच्छे से पता है।”

पलाश कुसुम

कुसुमं मन ही मन सोचती है मुझे सच में पता है पलाश भईया। आपकी आँखें ही बोल देती है आप कितने पागल है। कुसुम अचानक हस पड़ती है। पलाश को समझ नहीं आया उसके हसी की वजह। “भूत ने पकड़ लिया है क्या?”

कुसुम को बोलने का मन करता है की हां, प्यार वाले भूत ने पकड़ा है। सिर हिलाकर बोली,”गुस्सा कम हुआ पलाश भईया?”

अचानक पलाश को खयाल आया कि कुसुम के पास आते ही उसका गुस्सा गायब हो चूका है। धीरे से कहा, “हुम्।”

“अच्छा, तो अब घर जाऊ?”

पलाश पूछता है, “मुझे मनाने के लिए बुलाई थी?”

“हां।”

“क्यू, मैं गुस्सा रहु तो तुझे क्या?”

कुसुम दिल की बात कह दी, “सांस नहीं ले पाती।”

कुसुम की इतनी सरल जवाब सुनकर पलाश का मन करता है उसके गालों को चुम लेने का। लेकिन तुरंत खुद को सम्हाल लेता है, सिर्फ प्यार की कलि ही दिखी है, पहले फूल खिल जाए, उसके बाद ही खुदको बेशरम बनने का मौका देगा। पलाश चाहता है यह बच्ची उसके सूखे हुए पौधे को लाल पलाश के फूलों से भर दे। पलाश कुसुम कि तरफ देखता है, दोनों की नज़रें मिल जाती है। पलाश की नशीली आँखे देखकर कुसुम अपनी आँखें बंद कर लेती है। काँपते हुए आवाज़ में बोलती है, “पलाश भईया, प्लीज, दुसरे तरफ देखिये।”

कुसुम के काँपते हुए होठों को देखकर पलाश सोचता है, बस एकबार फूल पूरी तरह से खिल जाये कुसुम, अपनी गरमी से तुझे जलाकर राख कर दूंगा। इतना सुख दूंगा के रुलाकर ही छोड़ूंगा।

फिर कहा, “चल, आगे तक छोड़ देता हूँ।”

पलाश के बदन की खुशबू कुसुम के अंदर तक हिला देता है, बोलने का मन करता है, इतनी अच्छी खुशबू क्यू आती है पलाश भईया? मैं मर रही हूँ, जल रही हूँ, आपको दिख नहीं रहा? आजकल कुसुम के मन में जो पागल हवा चल रही है उसे सम्हालने में कुसुम को भी मुश्किल हो रही है।

दोनों चुपचाप पैदल चल रहे है। घर के पास आ कर पलाश कुसुम का हाथ पकड़कर पास लाता है, दोनों गालों पर हाथ रखकर बहोत नरमी से कहता है, “शाम को बहोत ज़ोर से डाट दिया था, सॉरी।”

पलाश

कुसुम के चेहरे पर हसी आ जाती है। पलाश कुसुम को छोड़कर कहता है, “जा।”

कुसुम आगे बढ़ जाती है। गुसा दिखाने के बाद कितने लोग अपनी गलती समझ पाते है? यह जो पलाश ने सॉरी कहा , इस छोटी सी सॉरी से ही बहोत शांति मिलती है। इतनी सी सॉरी ही कोई कहना नहीं चाहता, ईगो दिखाकर जीतना चाहता है। और जो लोग बोल सकते है उनका रिश्ता कभी ख़तम नहीं होता। गुस्सा दिखाने के लिए भी कोई अपना चाहिए।पलाश का वह अपना है कुसुम। ख़ुशी से कुसुम का मन भर जाता है।

कमरे में आ कर चुपचाप दरवाजा बंद करता है। तुरंत उसकी माँ दरवाज़ा खटखटाने लगती है। डर के मारे कुसुम का हसी ख़ुशी चेहरा सुख जाता है।

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