पलाश कुसुम का हाथ पकड़कर झाड़ी के पीछे बैठ जाता है। कुसुम डर के मारे रो पड़ती है, “पिताजी को पता चला तो मार ही डालेंगे पलाश भईया।”
पलाश के सीने में भी धक् धक् हो रहा है। वो कुसुम को पाना तो चाहता है, लेकिन इस तरह रात के अँधेरे में पकड़ा जाकर नहीं। वो कुसुम का हाथ ज़ोर से पकड़कर कहता है, “चुप रह।”
दो लोग टॉर्च जलाकर आगे आते है। झाड़ी में से दो कुत्ता निकल कर भौकता हुआ उन लोगो को देखता रहता है । उन में से एक ने कहा, “अरे यार, यह तो कुत्ता है।”
दूसरा आदमी इधर उधर लाइट मारा। लेकिन कोई दिख़ा नहीं, “साला, कुत्ता है। मुझे लगा पंछी फसा है।”
पहले ने कहा, “हरामज़ादे, कुत्तो को डिस्टर्ब कर दिया तूने।”
दोनों बात करते करते चले गए। कुसुम पलाश को देखती है, और पलाश पहले से ही उसे देख रहा था । “डर गयी थी?”
“बहुत।”
पलाश ने हसकर कहा, “डरने कि क्या बात है? देख लेता तो शादी करवा देता।”
कुसुम गुस्सा दिखाकर कहता है, “बहोत शौख है ना!”
ये सुनकर पलाश कहता है, “तो और क्या, तेरा तो भाग खुल जाता मेरे जैसा दूल्हा पाकर।”
“नहीं चाहिए।”
“समझती तो नहीं कहती, गधी कही कि!”
कुसुम कुछ बोलती नहीं।
पलाश ने फिर अफ़सोस के साथ कहा, “आखिर में कुत्ता बना दिया, क्या किस्मत है!”
कुसुम हस पड़ी। सिर हिलाकर बोली, “ठीक हुआ।”
“बदमाश बच्ची, तेरे ही वजह से इस पलाश को किसी ने कुत्ता कहने का हिम्मत किया।”
कुसुम हैरान हो गयी, “मैंने क्या किया?”
रोज़ रोज़ मिलने बुलाती है, इसीलिए तो आता हूँ। और आज पकड़ा जा रहा था।”
कुसुम और भी हैरानगी से कहा, “मैंने कब बुलाया?”
पलाश ट्रॉउज़र से धूल हटाकर कहा, “आगे जा। मैं देख रहा हूँ, दौड़ कर घर के अंदर जा।”
कुसुम फिर से कहती है, “मैंने बुलाया कब?”
पलाश हसकर कहता है, “आप ही तो रोज़ बुलाती है मैडम। अभी जाइये, वरना फिर से कोई कुत्ता भगाने आ जायेगा।”
कुसुम पलाश के घुंगराले बालो को देखता है। उसके हसी के साथ साथ उसके बाल भी लहरते है। उसका मन करता है उलझे बालो को और उलझा देने का। लेकिन सारे ख्वाहिश पुरे नहीं कर सकते। “अब रात को मत आना।”
“क्यू?”
“किसी न किसी दिन कोई देख ही लेगा।”
“देखा जायेगा, अभी जा।”
कुसुम को जवाब पसंद नहीं आया। जल्द ही से घर चली जाती है। पलाश कुछ भी साफ़ साफ़ नहीं कहता। लेकिन कुसुम सब साफ़ साफ़ सुनना चाहती है, जानना चाहती है पलाश के दिल कि बात।
पलाश कुसुम को जाते हुए देख हस देता है। मन ही मन सोचता है, “बाल बाल बचा।”
कुसुम अगर समझती पलाश किस लिए बार बार दौडक़र आता है तो खुद ही पलाश को और कुछ देर रोक कर रखती।
वो सोचता है अब रात को मिलना ठीक नहीं रहेगा, ज़रुरत पड़ी तो कुसुम को अपने पास लेकर रखेगा। उसका मन है कि चुनाव के बाद ही वो अपने पिताजी से कुसुम के बारे में बात करेगा। अब और दूर रहा नहीं जा राहा, यह लड़की जैसे उसका सुकून है ।
इसके बाद पलाश कभी रात को नहीं आया। कॉलेज जाते वक़्त थोड़ा देखना, बस इतना ही। बात नहो होती, फिर भी आँखों आँखों में बहोत सारी बातें होती है। कुसुम चोरी चोरी पलाश को देखती है, पलाश भी पागलो कि तरह उसे देखता है। दोनों के चेहरे पर हलकी सी हसी आ जाती है।
इसी तरह बीत गए कुछ दिन। आगे कुछ हफ्ते पलाश बहोत ही बिज़ी हो जाता है, उसके पिताजी का चुनाव है सामने। इस चक्कर में रोज़ कुसुम को देखने नहीं जा पा राहा। फ़ोन पर ही तस्वीर देखकर खुदको सम्हाल रहा है। एक दिन अचानक रस्ते में रोककर कहा,
“ए बच्ची, रुक। कुसुम रुक जाती है। उसे पता है चुनाव के काम के लिए पलाश बिज़ी रहता है।
“तुझे एक एंड्राइड फ़ोन खरीद कर दू?”
कुसुम पूछती है, “क्यू?”
“बात करने के लिए।”
“बात क्यू करू?”
पलाश बाइके का आइना ठीक करते हुए कहता है, “तुझे पता नहीं क्यू बात करना है?”
“नहीं।”
पलाश ने हसकर कहा, “क्यू नहीं पता?”
कुसुम नज़रे उठाकर पलाश को देखती है, “”यूही।”
“अच्छा ठीक है, एक छोटा सा बटन फ़ोन खरीद कर दूंगा। छुपा कर रख पायेगी।”
कुसुम सिर हिला कर कहती है, “माँ बहुत चालाक है, देख लेगी।”
“कैसे देखेगी? छुपा कर रखना।”
“नहीं हो सकता भईया।”
“क्या मुसिब्बत है!”
कुछ देर और बात करके दोनों घर चले जाते है।
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