पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – १५ (15)

पलाश के जाते ही कुसुम रोने लगती है। अशोक और शीला आगे आते है। अशोक कुसुम से कहता है, “अरे रो मत, अभी दिमाग गरम है, बाद में ठीक हो जाएगा।”

कुसुम चुपचाप घर आ जाती है। रात को शब्बीर ने कहा, “कुसुम, सुना है गाँव में चांदनी रात बहोत खूबसूरत लगता है दिखने में, चल देख कर आते है।

कुसुम मन ही मन गाली देती है, क्यू भाई, शहर में क्या चाँद नहीं निकलते? गाँव में ही क्यू चाँद देखना है? तेरे वजह से वहा कोई जल भून कर खाक हुए जा रहा है, अभी तेरे संग चाँद देखने गयी तो मार ही डालेगा। बिलकुल नहीं हो सकता। मुँह से बोली,” भईया, मेरा सिर बहोत दुख रहा है, आप दीदी और जीजाजी के साथ चले जाइये।”

फिर तुरंत चली गयी सोने। लेकिन सोइ नहीं, बिस्तर पे पड़े पड़े सोच रही है कैसे पलाश को मनाया जाए। पलाश गुस्सा हो कर बैठा है, कुसुम को चैन नहीं मिल रहा। बहोत सोचने के बाद कुसुम अपने माँ के घर से फ़ोन चुरा कर ले आती है। कुसुम अपने कमरे में आ कर गहरी गहरी सांसें लेने लगी, वो यह सोच कर हैरान हो गयी कि वह पलाश के लिए फ़ोन चुराई है। फिर डायरी से पलाश का नंबर निकालकर फ़ोन लगाती है।

पलाश कुसुम

पलाश थोड़े ही देर में एक पैकेट सिगरेट ख़तम कर चूका है। सिर में बहुत दर्द है, बेशरम लड़की, इस लड़की के लिए पलाश सालो तक इंतज़ार किया, और वह एक दिन के जान पहचान वाले उस लड़के के साथ घूमने चली गयी! पलाश इस उम्र में भी उसके पीछे पीछे घूम रहा है वो नहीं दिखता? तभी फ़ोन पर कुसुम की माँ की नंबर उभर आया। पलाश देखता रहा, थोड़ी देर बाद कट गया। फिर बज उठा, पलाश खुदा सम्भालकर फ़ोन उठाकर चुप रहता है। जब कुसुम को पलाश की आवाज़ सुनाई नहीं दी वो धीमी आवाज़ में फुसफुसाकर बोली, “पलाश भईया, प्लीज बात कीजिये न।”

पलाश फिर भी चुप रहता है। कुसुम खुद को सम्हाल नहीं पायी, रो पड़ी, “मुझे जाना नहीं चाहिए था, प्लीज।”

पलाश ने कहा, “तो गयी क्यू ?”

कुसुम रोते हुए कहती है, “अभी मिलना है ।”

कुसुम का रोना पलाश को अच्छा नहीं लगता है, धमकाते हुए कहा, “ऐसे रो क्यू रही है?”

वो फिर से कही, “मुझे मिलना है ।”

पलाश ने कहा, “बहोत रात हो गयी है, अभी मिल नहीं सकते।”

प्लीज!”

“उस दिन की तरह कोई देख लेगा।”

कुसुम ज़िद्दी हो कर बोली, “तो देख ले, मुझे अभी मिलना है।”

पलाश कहता है, “मुझे नहीं पता।”

“मैं हिजल के पेड़ के नीचे आ रही हूँ, आपको आना है तो आइये।”

“मैं नहीं आउंगा।”

पलाश

कुसुम सिर पर दुपट्टा डाले निकल गयी। फुसफुसाकर बोली,”मैं निकल गयी हूँ।”

बोलकर फ़ोन काट दी। धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी। पलाश के चक्कर में पढ़कर अब उसे अँधेरे से डर नहीं लगता। क्या सब ही के साथ ऐसा होता है? प्यार हो जाने से हिम्मत बढ़ जाती है? ये जो सुनसान रात भी उसे डरा नहीं पा रही है, बस पलाश का नाम जापे जा रहा है। कुसुम को इतनी बेचैनी हो रही है जैसे पलाश को अगर नहीं देखा, नहीं मना पाया तो वो मर जाएगी। हिजल के पेड़ के नीचे खड़े होते ही कुछ उल्लू पंख फैलाकर उड़ गए, कुसुम डर से काँप उठी। मन ही मन सोचने लगी पलाश आएगा न। उसका दिल कहता है कि आएगा। पलाश उसके लिए कितना पागल है ये कुसुम को पता है। पेड़ के ऊपर किसी अनजाने पंछी के हिलते ही कुसुम का छोटा सा दिल भी डर के मारे काँप उठती है, खेत पर लोमड़ियाँ दौड़ रहा है। पंधरा मिनट हो गया, अभी तक पलाश आया क्यू नहीं? तब ही दूर मोबाइल की लाइट दिखी। पलाश बहोत तेज़ी से आगे आता है। कुसुम के सामने आ कर मोबाइल पॉकेट में रखता है। कुसुम डर के मारे सिर्फ पलाश को देखती रहती है, कुछ बोलती नहीं। पलाश भी चुपचाप चाँद की रौशनी में सामने कि खेत पर लोमड़ियों का भागादौड़ी देख रहा है। कुसुम समझ नहीं पाती कि आखिर पलाश कितना गुस्सा है। धीरे से बोली, “आगे से कभी किसी लड़के के साथ घूमने नहीं जाउंगी।”

कुसुम की बात से पलाश को कोई फर्क नहीं पड़ा। वो कुसुम कि तरफ देख भी नहीं रहा है। अब कुसुम से सहा नहीं गया। छटपटाकर बोली, “इस तरफ देखिये न।”

पलाश जैसे आज ठान लिया है कि नहीं देखेगा। कुसुम बेचैन होकर बोली, “पलाश भईया, प्लीज देखिये।”

पलाश कुसुम को देखती है। कुछ देर बाद कहा, “क्यू बुलाई? शहरी लड़का चला गया?”

कुसुम समझाने के लिए कहती है, “शब्बीर भईया घूमना चाह रहे थे, सब ने कहा, इसीलिए गयी थी, और कोई बात नहीं है।”

पलाश को और गुस्सा आता है, “तू क्या गाइड है जो पूरा गाँव घुमाएगी ? या शहरी लड़का देखकर पट गयी? पसंद आ गया?”

कुसुम कान पकड़कर बोली, “कान पकड़ती हूँ पलाश भईया, अब आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा।”

थोड़ी देर रूककर फिर से बोली, “उठक बैठक भी कर रही हूँ, प्लीज।”

To be continued…………….

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