पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – १४ (14)

कुसुम के पिताजी अब्दुल हसनआज दुकान नहीं गए। वैसे उनके न जाने से कुछ खास फरक नहीं पड़ेगा। दो बावर्ची, चार कर्मचारी उनके होटल में काम करता है। वो सिर्फ कैश पर बैठते है। आज उनकी बड़ी बेटी मुन्नी शहर से आ रही है। साथ में उसका पति सईद और देवर शब्बीर आ रहा है। लगभग एक साल बाद बेटी आ रही है, घर में जैसे जशन मनाया जा रहा हो। कुसुम ख़ुशी ख़ुशी बहन की इंतज़ार करती है। मुन्नी दीदी मतलब उसकी अच्छीवाली दीदी। दस बजे वो लोग आते है। कुसुम तो बहुत खुश है। दोपहर के खाने के बाद सब बातें करने लगे। शब्बीर ने कुसुम से कहा, “कुसुम तुम्हारा गाँव नहीं दिखाओगी?”

कुसुम शब्बीर को देखती है। वो सायद कुसुम को पसंद करता है, हमेशा उससे बात करना चाहता है, अलग तरह से देखता है। मुन्नी बोली.” क्यू नहीं दिखाएगी? कुसुम, शाम को ही ले जाना।”

कुसुम मान जाती है।

शाम को कुसुम शब्बीर के साथ घूमने जाती है। कुसुम को डर लगता है कही पलाश देख न ले।

चलते चलते दोनों कॉलेज के रस्ते पर आ जाते है। शब्बीर कुसुम से पूछता है, “कुसुम क्या तुम्हारा कोई खास है?”

सब्बीर बॉयफ्रेंड के बारे में जानना चाहता है। कुसुम को मन करता है पलाश के बारे में कहने का, लेकिंन अगर शब्बीर उसकी दीदी और जीजाजी को बता दिया तो? वो सर हिलाकर कहती है,”नहीं।”

शब्बीर मुस्कुराकर कहता है, “प्लस पॉइंट।”

पलाश और कुसुम

तभी अचानक से एक बाइक आ कर थोड़ी दूरी पर रुकता है।पलाश को देख कर कुसुम डर के मारे काँप उठती है। शब्बीर पलाश को देखता है। पलाश कुसुम को एक बार देखकर फिर से बाइक स्टार्ट करके चला जाता है। शब्बीर पूछता है, “क्या तुम उसे पहचानती हो?”

कुसुम बोली, ” इलाके के भईया है।”

शब्बीर चलते चलते कहा, ” जिस तरह से आकर रुका और देख रहा था जैसे बॉयफ्रेंड हो।”

कुसुम का मन करता है शब्बीर का बाल उखाड़ ले। इसीके वजह से ये आफत हुई। शब्बीर कहता है, “अच्छा छोड़ो, ये बताओ, मैं तुम्हे कैसा लगता हूँ?”

कुसुम के कुछ बोलने से पहले पलाश का बाइक फिर से आकर रुकता है। अशोक पीछे से कुछ कहते ही पलाश ज़ोर से धमकाता है, कुसुम काँप उठती है। उसके बाद फिर चला जाता है।

शब्बीर चिढ़कर कहता है, “बुड़ा लड़का है क्या?” कुसुम कहती है, “भईया घर चलिए।”

घर पोहोचने के बाद पता नहीं क्यू कुसुम को लगता है आज पलाश मिलने आएगा। हुआ भी वही। शाम को शीला आती है। कुसुम को अकेले में कहती है, “पलाश भईया आए है, चल।”

कुसुम आस पास नज़रे फेर कर कहती है, “कहा?”

पलाश

“हमारे घर के पास।”

कुसुम अपने माँ को कहती है वो शीला के घर जा रही है, दो मिनट में आ जायेगी। शीला के घर के पास पोहोचकर देखती है अशोक और पलाश खड़े है। कुसुम पलाश के पास जाते ही अशोक और शीला वहा से दूर चले जाते है। कुसुम डर के मारे सर झुका कर रखती है, लेकिन पलाश चुप हैं देखकर सिर उठाकर देखती है। पलाश लाल लाल आँखों से कुसुम को देख रहा है।पलाश ने कहा, “वो लड़का कौन है?”

“दीदी का देवर।”

पसंद आ गया?”

कुसुम चौक कर कहती है, “नहीं।”

“क्यू नहीं?” इतनी तो हंस हंस कर बात कर रही थी।”

कुसुम डरते हुए बोली, “ऐसा कुछ नहीं है।”

पलाश धमकाकर कहा,”तो कैसा है हां? इतना घूमना किस बात का? मैं पसंद नहीं हूँ? शहर का लड़का देखते ही पट गयी?”

कुसुम के आँखों में आंसू आ गए । “पलाश भईया….”

बात ख़तम होने के पहले ही पलाश ने कहा, “मैं मिलना चाहू तो प्रॉब्लम, बात करू तो प्रॉब्लम, लेकिन उस एक दिन के लड़के के साथ कॉलेज रोड पर चली गयी? ऊपर से रस्ते पर खड़े हो कर हंसी मज़ाक।”

“एक काम करता हूँ, मैं मर जाता हूँ, तब जो मन में आए करना। लेकिन मैं तुझे ये सब बोल ही क्यू रहा हूँ? कौन हूँ मैं? चल हट।”

To be continued…………………………

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