पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – १७ (17)

कुसुम जल्द ही से सिर से दुपट्टा निकालकर टेबल पर फेका। बालों को उलझाकर, मोबाइल तकिये के नीचे छुपा लिया। नींद का नाटक करते हुए दरवाज़ा खोला। रुखसार बेगम अंदर आ कर गुस्से से बोली, “कहा थी?”

कुसुम मन ही मन घबड़ा जाती है। “कही नहीं, सो रही थी।”

रुखसार बेगम आँखे दिखाती है। कुसुम धीमे से बोली, “क्यू बुलाई थी माँ?”

रुखसार बेगम कमरे के अंदर आ कर बोली, “पांच मिनट से बुला रही हूँ, ऐसे ही सोती है?”

कुसुम झुटमुट का आँखें रगड़कर कहती है, “बहोत ज़ोर की नींद लगी थी माँ, इसीलिए।”

पलाश

“कैसे सोती है, घर में आग भी लग जाए तो पता नहीं चलेगा।”

कुसुम कुछ बोलती नहीं, चुप रहना ही बेहतर है।

रुखसार बेगम फिर से बोली, “गधे जैसी सोती है, लड़कियां ऐसे सोती रही, तो हो चूका संसार संभालना। हट, अलमारी से तकिया निकालना है।”

कुसुम कि जान में जान आयी, जो सोच रही थी, वैसा कुछ नहीं हुआ। धीरे से बोली, “तकिया किसके लिए माँ?”

रुखसार बेगम आँखें दिखाकर बोली, “बड़ी दीदी आयी है, खयाल रखेगी, नहीं, खुद पहले सोने चली आयी।”

कुछ देर रूककर फिर बोली, “मुन्नी के कमरे में एक और तकिया लगेगा, दामाद जी को दो तकिया लगता है।”

कुसुम सिर हिलाकर बिस्तर पर बैठती है, दिल इतने ज़ोर से धड़क रहा है, माँ को पता चला तो मार ही डालेगी।

तकिये पर सिर रखकर बोली, “लाइट ऑफ कर देना माँ।”

रुखसार बेगम लाइट बुझाकर चली गयी। कुसुम आँख बंद करके पलाश को देखती है। आजकल आँख बंद करते ही पलाश की हसी, उसकी वो नशीली नज़रें आँखों के सामने आ जाती है। कुसुम सुकून से सो जाती है।

आज दो दिन हुआ शब्बीर और सब कुसुम के घर आए है। आज चले जाएंगे, सब तैयार हो कर गाड़ी के लिए इंतज़ार कर रहे है। शब्बीर बारबार कुसुम को देख रहा है। ये लड़की ऐसी क्यू है? शब्बीर को घास ही नहीं डाल रही है। शब्बीर जा कर कुसुम के पास खड़ा होता है, “कुसुम”

कुसुम शब्बीर कि तरफ देखती है, शब्बीर उसे बहोत पसंद करता है, यह उसके आँखों से पता चलता है। अच्छा, क्या लड़कों को पता है कि उनके दिल की बात मुँह तक आने से पहले आँखों पर आ जाती है? सारे लड़कों के साथ ऐसा होता है की नहीं पता नहीं, लेकिन ज़्यादातर लड़कों का ही होता है। कुसुम सिर का दुपट्टा ठीक करते हुए बोली, “जी भईया।”

पलाश और कुसुम

शब्बीर ने पूछा, “शहर कब आओगी?”

कुसुम सोची थी अब के बार शहर में अपने दीदी के घर जायेगी। लेकिन अभी शब्बीर का चाल चलन देखकर लग रहा है न जाना ही ठीक रहेगा। “जाउंगी जब कलेंगे बंद रहेगा।”

“कुसुम तुमसे एक बात करनी थी।”

कुसुम को पता है शब्बीर क्या कहेगा। सुनने का मन तो नहीं कर रहा, लेकिन ऐसे मना भी तो नहीं कर सकती। तभी घर के बहार गाड़ी की हॉर्न सुनाई देती है। कुसुम बोली, “भईया, गाड़ी आ गयी, दिदि को बुला कर लाती हूँ।” बोल कर  ही घर के अंदर चली गयी। शब्बीर अपना बाल खींच लेता है, किसी भी कीमत पर कुसुम उसे चाहिए। ऐसी लड़की बहोत कम ही देखा है उसने। दिल की बात न कह पाने की दर्द से परेशान हो जाता है।

अब्दुल हसन और रुखसार बेगम इन दिनों शब्बीर का बहोत अच्छे से देखभाल किये थे। दिखने में, सुनने में हर तरह से अच्छा है, अच्छा बर्ताव, अच्छी नौकरी, शहर में अपना घर, जान पहचान के अंदर ऐसे लड़के के साथ अगर कुसुम की शादी होती तो बहोत अच्छा होता। सारे माँ बाप ही अपने बेटियों को अच्छे जगह शादी करवाना चाहते है, चाहते है कि बेटियां अच्छे से रहे, सुख से रहे।

पलाश और कुसुम

मंगलवार दोपहर से बहोत तेज़ बारिश शुरू होती है। कुसुम और शीला कॉलेज से निकलकर रस्ते के सामनेवाली दुकान पर आते है। अचानक कुसुम को दिखता है रस्ते के उस पार वाली दुकान पर पलाश, अशोक और कमाल मेंबर चाय पी रहे है। कमाल मेंबर कुछ बोल रहे है, और पलाश सुनकर हस रहा है। कुसुम बिना पलक झपकाए देखती रहती है। पलाश कितना सुन्दर है। यकीन नहीं होता, लेकिन यही सच है कि इतना सुंदर पलाश उससे प्यार करता है, उसके लिए हज़ारों पागलपन करता है। कुसुम नज़रें हटा लेती है। ये पलाश न, सिर से लेकर पैर तक नशा है, इतना प्यार आता है कि क्या कहे। शीला बाकी लड़कियों के साथ बात कर रही है। कुसुम खुदको रोक नहीं पाती, फिर से देखती है पलाश को। पलाश के सिगरेट पीने का तरीका भी कुसुम को अच्छा लगता है। अच्छा, जिससे प्यार करते है, क्या उसका सब कुछ लड़कियों को अच्छा लगता है? शायद। कुसुम शरमाकर सिर झुका लेती है। नज़रे उठाई तो देखा पलाश उसीको देख रहा है। कुसुम नज़रें नहीं हटाई, आँखों में आँखे डालकर देखती रही। पलाश हस पड़ा। कुसुम जो उसे देख रही है, पलाश का मन कर रहा है बारिश से भीगी हुई सड़को पर इस लड़की का हाथ पकड़कर चलने का। पलाश बाइक कि चाबी अशोक को देकर, शीला को लेकर चले जाने के लिए कहता है।

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