“दिल के बगीचे में फूल तो खिला, पर भवरे का पता नहीं” कुसुम की उदासी मिटाने के लिए शीला उल्टा सीधा गाना गा रही है। हिजल के पेड़ के नीचे आते ही शीला चुप हो जाती है। पलाश उसी को देख रहा है, कही सुन तो नहीं लिया ? कुसुम और शीला सिर झुकाकर चली जाती है । कुछ दूर जाकर शीला कहती है, “अच्छा, इस पलाश भईया की कहानी क्या है?”
कुसुम पूछती है, “कौन सी कहानी ?”
“रात के बारह बजे मिलने का क्या मतलब है?”
कुसुम को भी इसका मतलब समझ नहीं आया, इसीलिए सिर हिलाकर बोली, “मुझे क्या पता ?”
शीला कहती है, “कुसुम, कही ऐसा तो नहीं, पलाश भईया तुझे पसंद करते हैं।”
यह सुनकर कुसुम थोड़ी डर जाती है। ऐसा तो कभी उसने सोचा ही नही। क्या यह भी मुमकिन है ?
“क्या उलटी सीधी बोले जा रही है ? वह मुझे क्यू पसंद करेंगे ?”
“तू न गधी है, कुछ भी नही समझती।”
“क्या समझू ?”
शीला कुसुम के हाथों पर हाथ रखकर कहती है, “लड़कों की आंखों की ओर देखकर ही समझा जा सकता है। तो फिर तू क्यों नहीं समझती?”
कुसुम अपने सिर को हिलाते हुए कहती है, “मैं कभी भी उनके आंखों की ओर नहीं देखती हूँ, मुझे डर लगता है।”
“तब तो तू कभी समझेगी भी नही। लड़को के होठो पर कुछ होता है, और आँखों पर कुछ और।
कुसुम चुप हो जाती है और सोचने लगती है।
शीला फिर से कहती है, “आज कॉलेज से लौटते वक़्त देखना।”
कुसुम ने तय कर लिया कि आज वह देखेगी। दोपहर में अशोक कॉलेज आकर शीला को मामा के घर ले जाता है। कुसुम सारे दिन सोचती रहती है कि क्या सच में पलाश उसे पसंद करता हैं? पलाश के सामने अकेले जाने से उसे डर लग रहा है। हिजल के पेड़ के पास जा कर आज पलाश अकेला ही दिखा। जाते जाते कुसुम पलाश कीओर देखती है, दोनों की आँखे मिल जाती है। पलाश की आँखों में कोई कठिनाई नही है, है तो सिर्फ प्यार। कुसुम का दिल कांप उठता है, उसके अंदर हलचल महसूस होती है। पीछे मुड़कर फिर से देखती है, पलाश उठकर उसके पास आ जाता है, कुसुम जल्दी से जाने लगती है तो पलाश सामने आकर खड़ा हो जाता है। कुसुम की साँसे गहरी हो जाती है, अगर वह गलत नही हुई तो? उसे कुछ सूझ नही रहा, धीरे से बोली, घर जाना है।”
पलाश के आवाज़ में जैसे ऋतुराज की लहरें चमक रही हैं, लेकिन ऋतुराज की कोयल तो उसकी ओर देख ही नही रही। क्या उसके मन को भी ऋतुराज छू गया हैं? इसीलिए कैद होना नही चाहती? नशीली आवाज़ से कहता है, “इतनी जल्दी किस बात की? पहले मेरी तरफ देख।” पलाश पहली बार इतनी नरमी से बात की, जिसे सुनते ही नासमझ मन काँप उठता है। कुसुम को शख होती है, उम्र में इतना बड़ा पलाश उसे पसंद करता है?
पलाश ही फिर से बुलाता है, “देख।”
कुसुम धीरे से बोली, “क्या देखु?”
पलाश बोहोत आसानी से कहा, “मुझे।”
कुसुम आँखें उठा कर देखती हैं। डर के मारे गला सुख जाता है। पलाश का शांत चेहरा आज कुछ अलग लग रहा है। पलाश ने पूछा, “तबियत ठीक लग रहा है?”
कुसुम ने सिर हिलाया।
“तेरे पास फ़ोन नही है?”
“नही”।
फ़ोन चाहिए?”
“नही”।
पलाश मुसकुराता है।
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