पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – ४ (4)

पलाश कुछ कहता नहीं। एक दिन नशा करने को न मिले तो कैसा लगता हैं ये सिर्फ वही लोग समझ सकते हैं जिन्हे नशे की आदत हो। बड़ी बड़ी आँखोंवाली ये लड़की पलाश की आँखों का नशा है। और आज पांच दिन हो गया न पलाश को वो दिखाई दी, न सुनाई दी, न कुछ। चाँद की रौशनी में अशोक की ओर देखता है, “शीला को फिर से भेज”।

अशोक कहता हैं, “नहीं आती है, कहती है तबियत ठीक नहीं है.

पलाश चुपचाप बहोत देर तक बैठा रहता है। फिर बिन कुछ कहे उठ खड़ा होता है अशोक के घर जाने के लिए।  रात को बारह बजे, शीला तब सो रही है। अशोक उसे उठाता हैं। चिढ़ जाती है वह, कहती है, “”क्या हुआ भईया।”

कुसुम को एक बार फ़ोन लगा।”

नींद से शिला की आँखे जल रही है। पास में रखे मोबाइल को हाथ में लिया और कहा, “कुसुम के पास तो मोबाइल नहीं है, चाची के पास होगा।”

अशोक ने कहा, “एक काम कर, बोल की, कॉलेज की ज़रूरी नोटस के लिए फ़ोन किया है।”

शिला ने फ़ोन लगाया। पलाश की हरकते उसे समझ नहीं आ रहा है । उसी के वजह से कुसुम डांस नहीं कर पायी, इसीलिए वो लोग कम्पटीशन हार गए। अब और क्या चाहिए?

रात को कुसुम की मौसी ने फ़ोन किया था, कुसुम बात करके सो गयी थी, इसलिए फ़ोन उसीके पास था। इतनी रात को मोबाइल बजते ही कुसुम तड़ाक से उठकर बैठी, शीला का नंबर देखकर फ़ोन कान में लगाकर कहा “क्या हुआ, इतनी रात को क्यों फ़ोन किया?”

कुसुम की आवाज सुनतेही ही शीला ने मोबाइल अशोक को दे दिया, और अशोक फ़ोन ले गया बहार खड़ा हुआ पलाश के पास। कोई आवाज़ न मिलने पर कुसुम कहती है “शीला,”

पलाश मोबाइल लेकर दक्षिण की दिशा में एक पेड़ के नीचे पोहचता है।

“पाँच दिनों से कॉलेज क्यों नहीं जा रही है?”

शीला के मोबाइल पर पलाश की आवाज सुनकर कुसुम अपने कान से फ़ोन हटाकर फिर से नम्बर की जाँच करती है, यह शीला का नम्बर ही है ना !

पलाश ही फिर से कहता है,

“बात क्यों नहीं कर रही है?”

ऐसी भारी आवाज़ सुनकर कुसुम डर गयी

“तबियत ठीक नहीं थी।”

“अब ठीक है?”

“जी”

“तो आ कर मिल”

पलाश की ऐसी अजीब बात पर कुसुम हैरान हो जाती है। इतनी रात को मिलेगी मतलब? वो हैरानी भरी आवाज़ से पूछती है “इतनी रात को?”

“हा,अभी, मैं हिजल के पेड़ के नीचे हूँ। जल्दी आ।”

कुसुम का सीना धड़कने लगता है, ये कैसा लड़का है? इतनी रात को कोई मिलता है? जैसे कुसुम उसकी गर्लफ्रेंड है?

“बारह बज गया हैं, शिमुल भईया।”

“तो बजने दे”

कुसुम दबी हुई आवाज़ से बोली, “पिताजी घर पर है, सुन लेंगे।”

पलाश गुस्से से कहता है, “तेरे पिताजी की तो …”

कुसुम समझाने की कोशिश करती है, “प्लीज”।

“ठीक है, तू दरवाजा खोल, मैं आ रहा हूँ।”

पलाश बोहोत ज़िद्दी है, जो बोलता है वो करता ही है। कुसुम बोली, “अच्छा, मैं आती हूँ”

अशोक को फ़ोन देकर पलाश पेड़ के नीचे पोहोचा। कुसुम को घर से यहाँ आने में एक मिनट लगेगा। कुछ ही देर में, अँधेरे में एक लड़की पैदल चलकर आती हैं और साथ में लाती है पलाश के सीने में जो दर्द था, उसकी दवाई। कुसुम को  शर्म भी आ रही थी, डर भी लग रहा था। इतनी रात में एक लड़के से मिलकर उसका सीना कांप रहा है । पलाश आगे बढ़ता है। मोबाइल का लाइट कुसुम के चेहरे पर देता है। दो हाथ की दूरी पर खड़ा हो कर पलाश को लगता हैं जैसे उसका भूख मिट गया, मन का भूख। सीने के अंदर जलती हुई आग पर बारिश की ठंडी बूंदे गिर गयी। लेकिन यह लड़की कहा समझी? पलाश के सीने में जो तूफान उठा है, क्या कुसुम को दिखाई नहीं देता? कब देखेगी ? दोनों में से कोई कुछ नहीं कहा, कुछ देर बाद पलाश नरमी से कहा, “कल से कॉलेज जायेगी।”

कुसुम सिर हिलाकर बोली, “जाउंगी”।

“नहीं गयी तो….”

कुसुम सिर उठाकर कहा, “तो?”

“आज की तरह रात के बारह बजे बुलाके लाऊंगा, और नहीं आयी तो घर पर आ जाऊंगा।”

कुसुम हैरानी से काले रंग की टी-शर्ट पहने हुए लड़के को देखती रहती है, कितनी हक़ जताकर बात करता है ?

पलाश तब भी कुसुम को देखे जा रहा है। दिन पर दिन जैसे और प्यारी बनती जा रही है। उसे मन करता कुसुम के नरम गालो को छू देने का, बहोत सताती है यह लड़की। पलाश अपने बालो को पकड़कर दुसरे तरफ मूढ़ जाता है।

To be continued……………………

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