पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – ८ (8)

पांच मिनट तक सोचता रहा। सिगेरट फेंक कर कुसुम के खिड़की पर खटखटाता है कई बार, धीरे से बुलाती है, “कुसुम, ए कुसुम

कुसुम जागी हुई थी, खटखटाना सुनकर उठकर बैठ गयी। पहली बार सुनते ही उसे लगा पलाश आया है। वो कुछ देर वैसे ही बैठी रही। तभी पलाश की आवाज़ सुनी, लाइट नहीं जलायी। कुसुम की माँ रुख्सार बेगम बोहोत होशियार है, लाइट जलाने से उन्हें पता चल सकता है। कुसुम अँधेरे में ही खिड़की के पास पोहोचति है, एक पल्ला खोलते ही चांदनी में खड़ा पलाश दीखता है।कुसुम को देखकर पलाश खिड़की के और पास आता है, फुसफुसाकर कहता है,”ज़रा बाहर आ।”

कुसुम सिर हिलाकर कहती है, “इतनी रात को नहीं आ सकती।”

पलाश बोहोत धीरे से कहा, “प्लीज।”

कुसुम पलाश के आँखों पर आँखें डालती है, इस तरह से मिन्नत क्यू कर रहा है ? फिर सब भूलकर, खिड़की लगाकर, दरवाज़ा खोलकर बाहर आ जाती है। डर भी लगता है के मा, पिताजी को पता चला तो ज़िंदा गाड़ डालेंगे। धीमे कदमो से पलाश के सामने खड़ी होती है। पलाश बोहोत देर तक बिखरी हुई बालोंवाली लड़की को देखता रहता है। कुसुम को एक बार छूने का बोहोत मन कर रहा है, फिर दोनों हाथ अपने जेब में डाल लेता है। इस लड़के के सीने में जलती हुई आग क्या यह लड़की समझ पा रही है ? यह बच्ची देख क्यू नहीं रही है ? पलाश बोहोत धीमे से कहा, “मेरी तरफ देख।”

कुसुम सिर हिलाकर मना करती है। उन आँखों में देखते ही उसका दिल घबराने लगता है। नीचे की ओर देखती रहती है।

पलाश धमकाता है, “इतनी रात को आया हूँ, देखेगी क्यू नहीं, देख।”

पलाश और कुसुम

कुसुम देखती है। आज क्या हो रहा है उसके साथ ? जो वो कभी सोच भी नहीं सकती, वही सब हो रहा है। पलाश की आंखें क्या वो पढ़ नहीं सकती ? ज़रूर सकती है, लड़कियों को ये सब सिखाना नहीं पड़ता। कुसुम सिर झुकाकर कहती है, “क्यू बुलाया ?”

पलाश चुप रहता है, वो सिर्फ बात करते हुए होठों को देखे जा रहा है। फिर अचानक से उसे महसूस होता है के उसे कुछ और चाहिए, वो खुद को सम्हाल कर कहता है, “घर जा।”

फिर जल्द ही से पीछे मुड़कर चला जाता है, कुसुम उसी तरफ देखती रहती है, “क्या उनकी आँखें सच बोल रही है ?”

लेकिन अगले ही दिन कुसुम का दिल टूट गया, आँखों पर आंसू आ गए। पलाश एक खूबसूरत लड़की को बाइक में बिठाकर कही जा रहा है। वो लड़की खिलखिलाकर हस रही है और पलाश को पीछे से दोनों हाथो से जकड़ी हुई है। जकड़ ने का तरीका बोहोत ही घटिया लग रहा था, पर पलाश भी मुसकुरा रहा था। पंछी के जैसा कुसुम का छोटा सा दिल टूट गया। उसका दिल बारबार यही कहता है, “क्या उनकी आँखें झूठ बोल रही थी ? वो सब झूठ था ?”

To be continued………………………….

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