पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – १२ (12)

पलाश झाड़ी के पास जा कर खड़ा हुआ है। कुसुम हिचकिचाकर आगे बढ़ती है, बगैर प्यार के एक लड़का और एक लड़की के रात को मिलने का क्या मतलब है? कुसुम को कोई मतलब वतलब पता नहीं, लेकिन पलाश के पागलपन में शामिल होना अच्छा लगता है, हाला कि डर भी लगता है बाद में। चांदनी रात में सामने दिख रहा है, घुंगराले बालो वाला लम्बा चौड़ा लड़का उसी के और देख रहा है, दोनों हाथ जेब में डाले हुए। कुसुम के दिल में प्यार कि हवा लहरने लगता है, जैसे अनदेखा कोई उसका हाथ प्यार खींच कर रखा हो। कुसुम पलाश कि ओढ़ बढ़ता है।

पलाश पागलो कि तरह इस लड़की को देखे जा रहा है, क्यू इस बच्ची को देखने से इतना अच्छा लगता है। पलाश ने नरमी से कहा, “अभिमान हुआ है?”

कुसुम कुछ बोली नहीं।

उम्र में इतना बड़ा लड़का बच्चो कि तरह जवाब दिया, “स्वीटी मुझे पसंद करता है, मैं नहीं।”

अब कुसुम अपने गुस्से को सम्हाल नहीं पायी,”तभी तो, बाइक में बिठाकर हस्ते हस्ते घूम रहे थे।”

पलाश को कुसुम का गुस्सा, अभिमान, सब कुछ बहोत पसंद है। थोड़ा आगे बढ़कर कहता है, “जलन हो रही है?”

कुसुम के बहोत पास है पलाश। उसके नशीली आँखों पर आँख डाले कहता है,”नहीं।”

पलाश सीने के तरफ इशारा करके कहता है, यहा जल रहा है, मुझे दिख रहा है।”

कुसुम कि बेशर्म आँखों पर आंसू आ जाते है। पीछे हटकर कहती है, “कुछ भी मत बोलिए।”

कुसुम जाने लगती है तो पलाश जल्द ही आकर हाथ पकड़ लेता है। दोनों बहोत ही पास पास है। पलाश जैसे अपने आँखों से ही कुसुम को मार डालेगा। कुसुम रो पड़ती है और अपना हाथ छुड़ाना चाहती है, “छोड़िए।”

पलाश उसके आंसू पोछकर कहता है, “इतनी सी शरीर पर इतना गुस्सा आता काहा से है? हां?”

कुसुम रोए जा रही है। पलाश ने कहा, “मैं स्वीटी से प्यार नहीं करता।”

पलाश

कुसुम सिर हिलाकर बोली, “अच्छा।”

“अभी भी गुस्सा है?”

“नहीं।”

“रो रो कर अब आँखे मत सुझा लेना।”

कुसुम शरमा जाती है।

“हिल मत, सीधे से खड़ी रह।”

“क्यू?”

“मुझे अभी देखना है। हिलने से डिस्टर्ब होता है।”

ऐसी बातों से कुसुम के गाल लाल हो जाते है, होठ काँपने लगते है। इन सब बातों का मतलब क्या है? इतना सता क्यू रहा है? सीधे सीधे कुछ कहता क्यू नहीं?

कुसुम के काँपते हुए होठो को छूने का मन करता है पलाश को, उसके छोटे से शरीर को अपने बाहों में लेन का मन करता है।लेकिन यह मुमकिन तो नहीं। पलाश खुदको सम्हाल लेता है। इतने दिनों के इंतज़ार को ऐसे ख़तम नहीं होने देगा वह। इतने दिनों तह साहा है, तो और कुछ दिन भी सेह लेगा। कुसुम अभी अच्छे से बात करती है, अभिमान भी जताती है। यही तो चाहता था पलाश। जिस आग में पलाश जल रहा है, उसकी आंच कुसुम भी महसूस करे।

पलाश कि ऐसे नज़रें कुसुम कि रूह तक हिला देती है। काँप उठता है उसका दिल। ऐसी नज़रें कुसुम सेह नहीं पाती। “मुझमे ऐसे देखने वाली क्या बात है? आगे से मत देखना।”

पलाश धमका कर कहता है, “बकबक मत कर, मैं देख रहा हूँ।”

“बहुत देर हो गया मुझे आते, अब घर जाऊ?”

पलाश और कुसुम

पलाश ने कहा, “मैं जो इतने देर से यहा इंतज़ार कर रहा हूँ, तेरे चले जाने के लिए ?”

कुसुम मुँह फुलाकर बोली, “तो क्या करू?”

“मेरे आँखों में देख।”

कुसुम देखती है, पलाश ने एक कदम आगे आ कर कहा, “क्या दिख रहा है मेरे आँखों में?”

कुसुम ने मन ही मन कहा, “मेरी बरबादी, पलाश भईया। मेरा सब कुछ ख़तम हो जा रहा है। मेरा नासमझ दिल बहोत कुछ सीख जा रहा है।” कुसुम के कुछ बोलने से पहले ही एकआवाज़ आया, “कौन है रे झाड़ी के पीछे?”

To be continued…………………………

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