पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – १० (10)

शीला अपने बड़े भाई अशोक के साथ बहुत ही फ्री है। शाम को कुसुम ने जो बातें कहीं, उसने अपने भाई को कहा। अशोक तब ही पलाश को फ़ोन करता है।

घर कब आ रहा है?”

“कल।”

कुसुम तेरे बारे में शीला से पूछ रही थी।”

पलाश को यकीन नहीं आया, “क्या पूछ रही थी?”

“कहा गया है, बाइक पर बैठी लड़की कौन थी, यही सब।”

पलाश मुसकुराता है। मतलब खबर रखती है, याद भी करती है। बाइक पर किसी के बैठने से जलन होती है के नहीं ये पता लगाने के लिए तभी निकल पड़ता है। हिरन अगर खुद ही शिकारी को ढूंढ रही हो, तो शिकारी कैसे यूही बैठा रहे? दादी के लिए ही उसे आना पड़ा था। उनकी तबियत ठीक नहीं थी, डॉक्टर दिखाने के लिए पलाश को आना पड़ा, दो दिन लग गया सब काम ख़तम होने में, तय हुआ कि पारस बेगम अपनी बेटी आरफा के घर रहेंगी। पलाश को ही पता है ये चार दिन उसने कैसे निकाला। एक तो स्वीटी के नखरे, ऊपर से अपने प्रेमिका को न देख पाने का दर्द। लगभग रात के तीन बजे पलाश अपने घर पोहोचता है। एक बार सोचा के मिलकर आये, फिर इतनी रात को जाना ठीक नहीं होगा सोचकर रुक गया।

सुबह के नौ बजे कुसुम और शीला कॉलेज जा रही हैं। दोनों कॉलेज के बारे में बात कर रही हैं। कुसुम की आंखें बहुत जल रही हैं, बेहद ज़्यादा रोने से, रात को न सोने के वजह से आँखे सूझ गयी है, सिर दुख रहा है। तब ही देखा के हिजल के पेड़ के नीचे पलाश और अशोक बैठा हुआ है, उन लोगो को देखते ही पलाश खड़ा हो जाता है। आगे बढ़ता हैं कुछ बोलने के लिए। पलाश को देखते ही कुसुम का चेहरा गंभीर हो जाता है। पलाश के पास आते ही कुसुम वहा से चली जाती है।

पलाश

पलाश हैरान हो गया। उसे अनदेखा कर दिया? इतनी सी लड़की कि इतनी हिम्मत? लेकिन अपने प्रेमिका के चेहरे पर दुख के बादल उसे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था। पलाश को अच्छा लगने लगता है, प्यार कि शुरुवात ठीक से हुआ नहीं, अभिमान पहले ही शुरू हो गया। पलाश घर चला जाता है। सोचता है के शाम को फिर से आएगा। इसी लड़की के लिए उसे रस्ते पर इंतज़ार करना परता है। पागल बना चुकी हैं पूरी तरह से। शाम को पलाश कुसुम का रास्ता रोकता है, शिला के तरफ देखते ही वो मुस्कुराकर कुसुम को अकेली छोड़कर चली जाती है। कुसुम सिर झुकाकर खड़ी  है, पलाश पास आते ही कांप उठती है। पलाश नरमी से पूछता है, “क्या हुआ है?”

कुसुम को रोना आ जाता है, सिर हिलाकर बोलती है, “कुछ नहीं।”

पलाश कुसुम को देखते ही रहता है। इतने दिनों से मुलाकात नहीं हुआ, इसीलिए अभिमान है या स्वीटी के साथ देखा है इसीलिए? “मेरी तरफ देखकर बात कर।”

कुसुम देखती नहीं। “मुझे घर जाना है। हटिए ।”

पलाश हटता नहीं है, और भी पास आकर कहता है, “गुस्सा हैं?”

“नहीं।”

पलाश को मज़ा आता है। “मेरे बारे में पूछ क्यू रही थी?”

पलाश और कुसुम

कुसुम चौक जाती है, इनको कैसे पता चला? शिला ने कहा? उसे गुस्सा आया शीला पर, “गलती हो गयी, आगे से नहीं पूछूँगी।”

“अरे वाह, हिम्मत बहुत बढ़ गयी है, हिम्मत कि गोली खायी थी क्या?”

कुसुम खुद भी हैरान है, पहले वो पलाश से डरती थी, अब उतना डर नहीं लगता। वो बातें घुमाने कि कोशिश करती है, “अभी घर जाना है।”

पलाश कुसुम को थोड़ा और चिढ़ाने के लिए बोलता है, “मेरे बुआ कि बेटी बहुत खूबसूरत है। मुझे प्रोपोज़ किया है, सोच रहा हूँ मान जाऊ के नहीं!”

कुसुम नज़रें उठाकर पलाश को देखती है, उसके चेहरे पर मुस्कराहट है। “तो कर लीजिये प्यार, मुझसे क्यू कह रहे है?”

कुसुम जाने लगती है। पलाश पीछे से कहता है, “मुझे जिससे प्यार है, वो तो मुझे चाहता नहीं, तो कैसे प्यार करू? ए कुसुम, रुक तो।”

कुसुम रूकती नहीं, अपने आप में बड़बड़ करती है, “बड़ा आया प्रोपोज़ वाली बात बताने, बद्तमीज़ कही का।”

पलाश दौड़ कर आता है, “रात कोआऊंगा।”

कुसुम गुस्से से कहती है, “आ कर तो देखिये, पिताजी को बोल दूंगी।”

पलाश हैरान हो जाता है, ये लड़की उसे अपने बाप का नाम लेकर डरा रही है।

To be continued………..

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