पलाश और कुसुम की कहानी : एपिसोड – १ (1)

“ऐ बच्ची इधर आ।

आवाज सुनकर, कुसुम रुक जाती है। वह पलाश  को नहीं देखना चाहती है, लेकिन पलाश  बुला ही लिया। कुसुम डर के मारे अपने बैग को ज़ोर से दबोच लिया । वह अपने बेस्ट फ्रेंड शिला की ओर देखती है, शिला चमकती हुई आंखों से पलाश  की ओर देख रही है। कुसुम पलाश की ओर सीधा न देखकर पैरो की ओर देखकर बात करने की कोशिश करती है, लेकिन गले से आवाज़ नहीं निकल रही हैं, बड़ी मुश्किल से वह कहती है, “कॉलेज के लिए देर हो रही है शिला।”

पलाश  बाइक से उतरकर सनग्लास निकालता हैं, “अरे वाह! शिला, तुम लोग तो आजकल बहुत पढ़ाई कर रही हो! शिला ने कहा, “नहीं, पलाश  भैया, आप भी ना, क्या कह रहे हैं! हम तो आज एक घंटा पहले निकले हैं, बहुत वक़्त है अभी”। कुसुम शिला के हाथ पर चुटी काटती है । शिला परवाह ना करते हुए कहती है, “क्यों बुलाये, भैया?”

पलाश  कुसुम की ओर देखता है। वह उसकी ओर देख नहीं रही है, बोहोत डरती जो है उससे । लेकिन इतनी डरती क्यों है ? “कुसुम,” पलाश  के बुलाने पर, कुसुम हिचकिचाते हुए देखती है, “जी।” पलाश  साफ़ साफ़ कहता है, ” बड़े भाई को सलाम किये बिना क्यों चली गयी?” कुसुम थोड़ी नरमी से कहती है, ” सॉरी भैया, ध्यान नहीं रहा ।” ” क्या सॉरी? कान पकड़ कर दस बार उठक बैठक करो।” कुसुम घबड़ाकर कहती है, “क्या?” “दस बार काहा है, देर करने से और बढ़ जाएगा। जल्द ही से करो।”

इसी लिए कुसुम को ये लड़का पसंद नहीं है। हमेशा कुसुम को बेज़्ज़त करता रहता है ।

इन दोनों के परिवार में कोई रिश्ता नहीं है, बस इन दोनों के घर एक ही गांव में हैं। कुसुम के पिता का गाँव में एक होटल है, कुसुम तब सातवीं में पढ़ रही थी। वह स्कूल की फीस के लिए अपने पिता के पास गई थी। वहां जाकर देखती है कि पलाश  अपने दोस्तों के साथ नाश्ता कर रहा है। कुसुम पलाश  को सिर्फ पहचानती थी, कभी बात नहीं हुई थी । वह सीधे अपने पिता के पास चली जाती है। पलाश  कुछ देर तक वही खड़ा रहता है और कहता है, ” ऐ लड़की, सलाम करना नहीं आता?” कुसुम डर जाती है। वह अपनी पिता की ओर देखती है। अब्दुल हसन कहते हैं, “पलाश बेटा, यह मेरी छोटी बेटी कुसुम है। कुसुम, यह तेरे चेयरमैन चाचा का छोटा बेटा है, पलाश । सलाम करो, बड़े भाई है ।”

कुसुम अपनी बड़ी बड़ी आँखों से देखती है और कहती है, “अस्सलामु अलैकुम।” पलाश  मुस्कराता है, लेकिन उसकी गले की रूखापन नहीं जाती, “याद रखना, अब से देखकर ही सलाम देना।”

आज तक किसी ने कुसुम से ऐसे बात नहीं की थी। उसकी आँखों में आंसू आ जाती है। तब से लेकर आज तक पलाश को जहा जहा कुसुम दिखा, वो उसे सजा देता था, रुलाता था, और तो और डाट ता भी था। पलाश कुसुम के मुँह के सामने चुटकी बजाता है और फिर धमकाता है, “चल, बढ़ा दिया, पंधरा।”

To be continued……….

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